दोस्तों पहले तो सभी हिन्दीप्रवाह पाठकों को धन्यवाद कि वह अपना कीमती समय निकाल कर इस लेख को पढ़ रहे हैं सो बहुत बहुत धन्यवाद।
और अब बात में करता हूँ अपनी कि मैने क्यों आज के इस लेख में लक्ष्य के ऊपर लिखने का सोचा तो दोस्तों में आपको बता दूँ जीवन में हम जो भी करते हैं या आगे करेगे और अगर हम उन सब में असफल होते है तो उन सभी सफलताओं के पीछे कहीं न कहीं इसके पीछे हाथ होता है- एक सुनियोजित योजना का न होना।
आज के इस तनाव पूर्ण जीवन में हम सभी लोगों की इच्छा होती है एक सुखमय जीवन जीने की ओर इसके लिए हम लोग प्रयत्न भी करते हैं जो सफल हो जाता है वही सुखी कहलाता है हमारे आसपास समाज में तो यही धारणा है और देखा जाए तो कहीं न कहीं यहा ठीक भी हैं परन्तु सवाल है कि सफलता मिले कैसे। इसके लिए हमारे मन में असंख्य कल्पनाएं उठती रहती हैं और उन कल्पनाओं को पूरा करने के लिए हम लोग प्रयत्न भी करते हैं लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि सफलता कुछ ही लोगों को या यूँ कहूँ कि गिने-चुने लोगों को ही सफलता मिल पाती हे दरअसल इसकी शुरूआत छात्र जीवन से ही हो जाती है । कारण, कल्पना सबके पास होती है लेकिन उसको सच करने की शक्ति किसी-कीसी के पास ही होती है ऐसा क्यों। इस सबका एक मात्र कारण है- लक्ष्य का न होना और अगर लक्ष्य है भी तो उस लक्ष्य का गम्भीरता से अनुसरण न करना ।
अधिकाश लोग सही समय पर और सही दिशा में प्रयत्न ही नहीं करते और जो करते भी हैं वह तभी अपना प्रयत्न या मेहनत करना बन्द कर देते हैं जब वह अपने जीवन में अपनी मंजिल के सबसे ज्यादा करीब होते हैं
लक्ष्य तय करें अनुशासन के साथ- अपना लक्ष्य तय करे मगर अनुशासन के साथ ऐसा अक्सर देखा जाता है कि लक्ष्य तो ्अधिकांश सभी लोग तय करते हैं लेकिन उसका अनुसरण कुछ ही लोग करते हैं और यही वो लोग होते हैं जो सफल होते है ।लक्ष्य को अनुशासन के साथ तय करने का मतलब है कि सबसे पहले तो अाप अपना लक्ष्य तय करे तत्पश्चात तुरन्त उसे पूरा करने की दिशा में काम न करे बल्कि सबसे पहले लक्ष्य में आने वाली परेशानियों को देखे और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करे एक बार परेशानियों को हमने जीत लिया तो लक्ष्य रूपी वाहन में सवार होकर एकाग्रता रूपी ईंधन से और कुछ करने का जोश-जुनून हमे हमार मंजिल तक खुद-वा-खुद ले जाकर के खड़ा कर देगा।
महापुरुषों से ले सीख-- जो भी आप करना चाह रहे है उस बारे में महापुरुषों से सीख ले उनकी जीवनी इत्यादि जरुर पढ़े और प्रेरणा ले कि कैसे उन सभी लोगों ने हम लोगों की अपेक्षा कम साधन होते हुए भी अपनी मंजिल को न सिर्फ पाय बल्कि लाखों लोगो के प्रेरणास्रोत बन महापुरुष कहलाए ।
अन्त मैं सिर्फ यही कहना चाहूूँगा कि भगवान ने इंसान को सीमित समय और भरपूर ऊर्जा दी है इसलिए जरूरी है कि हम उसका सही तरीके से ओर सही दिशा में उपयोग करे और लक्ष्य हमें ठीक यही करने को प्रेरित करता है।
दर्शक न बने रहे आप अपने को जिस क्षण पा रहे हैं उस पूरी तरह उपयोग करे दर्शक न बने बल्कि हर प्रतियोगित का हिस्सा बने और अपना सर्वोत्तम पेश करेे प्रतियोगित भले ही छोटी स्तर की हो या बड़ो स्तर की आपको अपना सौ फीसद ही देना है।
जिसके जीवन का कोई ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है
--स्वामी विवेकानंद
और अब बात में करता हूँ अपनी कि मैने क्यों आज के इस लेख में लक्ष्य के ऊपर लिखने का सोचा तो दोस्तों में आपको बता दूँ जीवन में हम जो भी करते हैं या आगे करेगे और अगर हम उन सब में असफल होते है तो उन सभी सफलताओं के पीछे कहीं न कहीं इसके पीछे हाथ होता है- एक सुनियोजित योजना का न होना।
आज के इस तनाव पूर्ण जीवन में हम सभी लोगों की इच्छा होती है एक सुखमय जीवन जीने की ओर इसके लिए हम लोग प्रयत्न भी करते हैं जो सफल हो जाता है वही सुखी कहलाता है हमारे आसपास समाज में तो यही धारणा है और देखा जाए तो कहीं न कहीं यहा ठीक भी हैं परन्तु सवाल है कि सफलता मिले कैसे। इसके लिए हमारे मन में असंख्य कल्पनाएं उठती रहती हैं और उन कल्पनाओं को पूरा करने के लिए हम लोग प्रयत्न भी करते हैं लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि सफलता कुछ ही लोगों को या यूँ कहूँ कि गिने-चुने लोगों को ही सफलता मिल पाती हे दरअसल इसकी शुरूआत छात्र जीवन से ही हो जाती है । कारण, कल्पना सबके पास होती है लेकिन उसको सच करने की शक्ति किसी-कीसी के पास ही होती है ऐसा क्यों। इस सबका एक मात्र कारण है- लक्ष्य का न होना और अगर लक्ष्य है भी तो उस लक्ष्य का गम्भीरता से अनुसरण न करना ।
अधिकाश लोग सही समय पर और सही दिशा में प्रयत्न ही नहीं करते और जो करते भी हैं वह तभी अपना प्रयत्न या मेहनत करना बन्द कर देते हैं जब वह अपने जीवन में अपनी मंजिल के सबसे ज्यादा करीब होते हैं
लक्ष्य तय करें अनुशासन के साथ- अपना लक्ष्य तय करे मगर अनुशासन के साथ ऐसा अक्सर देखा जाता है कि लक्ष्य तो ्अधिकांश सभी लोग तय करते हैं लेकिन उसका अनुसरण कुछ ही लोग करते हैं और यही वो लोग होते हैं जो सफल होते है ।लक्ष्य को अनुशासन के साथ तय करने का मतलब है कि सबसे पहले तो अाप अपना लक्ष्य तय करे तत्पश्चात तुरन्त उसे पूरा करने की दिशा में काम न करे बल्कि सबसे पहले लक्ष्य में आने वाली परेशानियों को देखे और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करे एक बार परेशानियों को हमने जीत लिया तो लक्ष्य रूपी वाहन में सवार होकर एकाग्रता रूपी ईंधन से और कुछ करने का जोश-जुनून हमे हमार मंजिल तक खुद-वा-खुद ले जाकर के खड़ा कर देगा।
महापुरुषों से ले सीख-- जो भी आप करना चाह रहे है उस बारे में महापुरुषों से सीख ले उनकी जीवनी इत्यादि जरुर पढ़े और प्रेरणा ले कि कैसे उन सभी लोगों ने हम लोगों की अपेक्षा कम साधन होते हुए भी अपनी मंजिल को न सिर्फ पाय बल्कि लाखों लोगो के प्रेरणास्रोत बन महापुरुष कहलाए ।
अन्त मैं सिर्फ यही कहना चाहूूँगा कि भगवान ने इंसान को सीमित समय और भरपूर ऊर्जा दी है इसलिए जरूरी है कि हम उसका सही तरीके से ओर सही दिशा में उपयोग करे और लक्ष्य हमें ठीक यही करने को प्रेरित करता है।
दर्शक न बने रहे आप अपने को जिस क्षण पा रहे हैं उस पूरी तरह उपयोग करे दर्शक न बने बल्कि हर प्रतियोगित का हिस्सा बने और अपना सर्वोत्तम पेश करेे प्रतियोगित भले ही छोटी स्तर की हो या बड़ो स्तर की आपको अपना सौ फीसद ही देना है।
जिसके जीवन का कोई ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है
--स्वामी विवेकानंद
दोस्तों होता क्या है कि जब हम अपना लक्ष्य तय करते हैं तो हम सफलता पाने वाली कतार में खड़े हो जाते है जहां से होकर हमारी मंजिल का रास्ता जाता है और दोस्तों यह तो हम सभी जानते हैं कि कतार में एक बार खड़ृे हो जाने के बाद आज नहीं तो कल नम्बर तो आएगा ही इसीलिए सबसे पहला काम है लक्ष्य का निर्धारण अनुशासन के साथ।
अगर इस लेख को पढ़कर आप जरा सा भी परिवर्तित हुए हों तो जरूर कमेंट करके मुझे मेरा सर्वोत्म देने के लिए जरूर प्रेरित करें।
धन्यवाद