Saturday, 22 October 2016

why and how to choose a aim लक्ष्य के क्यों चुने

दोस्तों पहले तो सभी हिन्दीप्रवाह पाठकों को धन्यवाद कि वह अपना कीमती समय निकाल कर इस लेख को पढ़ रहे हैं सो बहुत बहुत धन्यवाद।
और अब बात  में करता हूँ अपनी कि मैने क्यों आज के इस लेख में लक्ष्य के ऊपर लिखने का सोचा तो दोस्तों में आपको बता दूँ जीवन में हम जो भी करते हैं या आगे करेगे और अगर हम उन सब में असफल होते है तो उन सभी सफलताओं के पीछे कहीं न कहीं इसके पीछे हाथ होता है- एक सुनियोजित योजना का न  होना।
आज के इस तनाव पूर्ण जीवन में हम सभी लोगों की इच्छा होती है एक सुखमय जीवन जीने की ओर इसके लिए हम लोग प्रयत्न भी करते हैं जो सफल हो जाता है वही सुखी कहलाता है हमारे आसपास समाज में तो यही धारणा है और देखा जाए तो कहीं न कहीं यहा ठीक भी हैं परन्तु सवाल है कि सफलता मिले कैसे। इसके लिए हमारे मन में असंख्य कल्पनाएं उठती रहती हैं और उन कल्पनाओं को पूरा करने के लिए हम लोग प्रयत्न भी करते हैं लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि सफलता कुछ ही लोगों को या यूँ कहूँ कि गिने-चुने लोगों को ही सफलता मिल पाती हे दरअसल इसकी शुरूआत छात्र जीवन से ही हो जाती है । कारण, कल्पना सबके पास होती है लेकिन उसको सच करने की शक्ति किसी-कीसी के पास ही होती है ऐसा क्यों। इस सबका एक मात्र कारण है- लक्ष्य का न होना और अगर लक्ष्य है भी तो उस लक्ष्य का गम्भीरता से अनुसरण न करना ।
अधिकाश लोग सही समय पर और सही दिशा में प्रयत्न ही नहीं करते और जो करते भी हैं वह तभी अपना प्रयत्न या मेहनत करना बन्द कर देते हैं जब वह अपने जीवन में अपनी मंजिल के सबसे ज्यादा करीब होते हैं

लक्ष्य तय करें अनुशासन के साथ- अपना लक्ष्य तय करे मगर अनुशासन के साथ ऐसा अक्सर देखा जाता है कि लक्ष्य तो ्अधिकांश सभी लोग तय करते हैं लेकिन उसका अनुसरण कुछ ही लोग करते हैं और यही वो लोग होते हैं जो सफल होते है ।लक्ष्य को अनुशासन के साथ तय करने का मतलब है कि सबसे पहले तो अाप अपना लक्ष्य तय करे तत्पश्चात तुरन्त उसे पूरा करने की दिशा में काम न करे बल्कि सबसे पहले लक्ष्य में आने वाली परेशानियों को देखे और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करे एक बार परेशानियों को हमने जीत लिया तो लक्ष्य रूपी  वाहन में सवार होकर एकाग्रता रूपी ईंधन से और कुछ करने का जोश-जुनून  हमे हमार मंजिल तक खुद-वा-खुद  ले जाकर के खड़ा कर देगा।

महापुरुषों से ले सीख-- जो भी आप करना चाह रहे है उस बारे में महापुरुषों से सीख ले उनकी जीवनी इत्यादि जरुर पढ़े और प्रेरणा ले कि कैसे उन सभी लोगों ने हम लोगों की अपेक्षा कम साधन होते हुए भी अपनी मंजिल को न सिर्फ पाय बल्कि लाखों लोगो के प्रेरणास्रोत बन महापुरुष कहलाए ।
 अन्त मैं सिर्फ यही कहना चाहूूँगा कि भगवान ने इंसान को सीमित समय और भरपूर ऊर्जा दी है इसलिए जरूरी है कि हम उसका सही तरीके से ओर सही दिशा में उपयोग करे और लक्ष्य हमें ठीक यही करने को प्रेरित करता है।
दर्शक न बने रहे आप अपने को जिस क्षण पा रहे हैं उस पूरी तरह उपयोग करे दर्शक न बने बल्कि हर प्रतियोगित का हिस्सा बने और अपना सर्वोत्तम पेश करेे प्रतियोगित भले ही छोटी स्तर की हो या बड़ो स्तर की आपको अपना  सौ फीसद ही देना है।  

जिसके जीवन का कोई ध्येय नहीं है, जिसके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं है, उसका जीवन व्यर्थ है
                                                                                                                                    --स्वामी विवेकानंद
दोस्तों होता क्या है कि जब हम अपना लक्ष्य तय करते हैं तो हम सफलता पाने वाली कतार में खड़े हो जाते है जहां से होकर हमारी मंजिल का रास्ता जाता है और दोस्तों यह तो हम सभी जानते हैं कि कतार में  एक बार  खड़ृे हो जाने के बाद  आज नहीं तो कल नम्बर तो आएगा ही इसीलिए सबसे पहला काम है लक्ष्य का निर्धारण अनुशासन के साथ।
अगर इस लेख को पढ़कर आप जरा सा भी परिवर्तित हुए हों तो जरूर कमेंट करके मुझे मेरा सर्वोत्म देने के लिए जरूर  प्रेरित करें।
                           धन्यवाद

Sunday, 16 October 2016

FOR THOSE WHO BURN FOR SUCCESS IN HINDI रेगिस्तान का पथिक

प्रिय दोस्तों,
जिन्दगी संघर्ष का दूसरा नाम है अतः किसी भी जीवनशैली में उच्चतम स्थान प्राप्त करने के लिए श्रम-साध्यता की शर्त अनिवार्य है। आप जिस किसी भी  माध्यम से अपने आजिविका की तलाश या जीवन में आगे बढ़ने की तलाश करना चाह रहे हैं उसमें फूल कम कांटे अधिक हैं । सच्चाई तो यह है कि हमारा जीवन उस रेगिस्तान के पथिक की तरह होना चाहिेए जो मार्ग के सारे झंझावतों को झेलते हुए भी अपनी मंजिल की ओर सदैव आगे बढ़ता है। आप लोगों के लिए मै एक कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ विश्वास है कि आप इससे जरूु कुछ प्रेरणा पा सकेंगे।

                                   रेगिस्तान का पथिक  

रेगिस्थानी जिन्दगी धूल से पटी हुई
 चिलचिलाती धूप आग उगलती हुई।
काँट और कंटीली झाड़ियाँ उत्साह की मुरझाए हुए
विरानी की हुक आँखों की भाव शून्यता बढ़ाए हुए।
चटपटाते होठ पर पानी की दो बूँद नहीं
पेट है कि पत्तल मंजिल के आगे कोई सुध नहीं।
जहरीलें जानवर रास्ते में हैं बड़े-बड़े
डस ले तो जिन्दगी खत्म हो जाए खड़े-खड़े
पर उसे खौफ नहीं कि कैसे सामना होगा
लहू-लूहान वह होगा कि उनका खात्मा होगा।
मुश्किल है रास्ता पर उसे कारवें की तलाश नहीं, 
अकेला चलना है उसे वह भीड़ का दास नहीं।
देखा है उसने लोगों को दबते भरी जवानी में, 
पर फर्क नहीं उसे मौत और जिन्दगानी में।
रात का अँधेरा भटका दे है उसे गम नहीं
आज पहुँचे या कल पहुँचे हिम्मत होगी कम नहीं।

मुझे आशा ही नहीं अपितु विश्वास है कि यह चन्द पक्तियां से हम अपने लक्ष्य में आने वाली हर उस मुश्किल का सामना करने में समर्थ होंगे जिनसे लोग अक्सर  डर कर भाग जाते हैं।
यह कविता अगर आप को जरा सा भी प्रेरित करे तो उस पर कमेन्ट कर अपना कीमती सुझाव जरूर दें ताकि आपके सुझाव से में भी प्रेरित हो सकूँ।
                                                                                              धन्यवाद।प्रवाह 
                                                                                 

Tuesday, 4 October 2016

पथ मेरा आलोकित कर दो

आगे जो कविता दी गई है उसके द्वारा हम न केवल सफलता प्राप्त कर सकते हैं बल्कि समाज में बहुत कुछ बन सकते हैं और हम प्रेरणा ले सकते हैं  हम इन छोटी सी कविता के माध्यम से ही बहुत कुछ हासिल कर सकते है इसी आशा के साथ   मेै इस कविता को प्रस्तुत कर रहा हू                                                                              पथ  मेरा आलोकित कर दो।
नवल प्रात की नवल रश्मियों से
मेरे उर का तम हर दो।।
                                               मैं नन्हा सा पथिक विश्व के
                                              पथ पर चलन सीख रहा हूँ ,
                                             मैं नन्हा सा विहग विश्व के
                                              नभ में उड़ना सीख रहा हूँ ।
पहुँच  सकूँ निर्दिष्ट लक्ष्य तक
मुझको ऐसे पग दो, पर दो।।
                                             पाया जग से जितना अब तक
                                              और अभी जितना मैं अब तक                
पाया जग से जितना अब तक
और अभी जितना मैं पाऊँ,
मनोकामना है यह मेरी
उससे कहीं अधिक दे जाऊँ।
                                           घरती को ही स्वर्ग  बनाने का
                                           मुझको मंगलमय वर दो।।
                                                                                   ------  द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी                                        
                                                                                   

।। श्री गणेशायः नमः ।।

दोस्तों आज का युग जैट का युग है और इस तेजी से चल रहे युग में हमारी हिन्दी भाषा उस हिसाब से नहीं चल पा रही हेै जितना कि उसे चलना चाहिए। कारण स्पष्ट है -युवाओं में हिन्दी के प्रति ललक का  उतना न होना जितना कि होना चाहिए मेरे इस ब्लोग का उद्देश्य काफी हद तक हिन्दी को बढ़ावा देना है इसलिए आज मेैं बहुत खुश हूँ।
 दोस्तों मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मैने इस ब्लोग को क्यों बनाया जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हर एक काम या कुछ करने के पीछे एक वजह होती हैे और बो वजह छोटी हो या ब़ड़ी कोई फर्क नहीं पड़ता।--- में इस ब्लोग के जरिए अपने  कुछ अनुभव को शेयर करना चाहता हूँ जो मैने महसूूस किए हैं या आगे करूँगा  मैं इस ब्लोग के माध्यम से लोगों के बीच एक सामंजस्य  और अच्छी सोच को उत्पन्न करना चाहता हूँ ताकि हम कभी निराश न हो और हताश न हों।
दोस्तों मुझे आप सभी से यह आशा है कि आप मेरी इस मिशन में मेरी सहायता करेंगे ।
                                                                                                         जय प्रवाह